पूर्णागिरी मंदिर |
PURNAGIRI MANDIR: पूर्णागिरि मंदिर का इतिहास
हम आपको लेकर चलते हैं देव भूमि उत्तराखंड कुमाऊं के जाने वाले पर्यटक स्थल ,में से एक पूर्णागिरि धाम यहां हम जानेंगे मां पूर्णागिरि के इतिहास के बारे में
पूर्णागिरी मंदिर की स्थापना कैसे हुई
कहा जाता है सन 1932 में कुमाऊं के राजा ज्ञानचंद के समकालीन में गुजरात के श्री चंद्र तिवारी नाम के व्यक्ति कुमाऊं भ्रमण करने आए थे, एक रात उनके सपने में मां जगत जननी ने उनसे कहा तुम मेरी मंदिर की स्थापना करो, उस सपने का उन पर इतना प्रभाव हुआ कि कुछ दिनों में मंदिर की स्थापना कर दी और पूजा पाठ करनी शुरू कर दी जो आज तक चली आ रही है|
मां पूर्णागिरि का मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले में टनकपुर शहर से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर माता के आदि शक्तिपीठों में से एक है .यह मंदिर महाकाली पीठ का माना जाता है माना जाता है. कि दक्ष प्रजापति की कन्या माता सती की नाभि का भाग यहां पर विष्णु चक्र से कटकर गिरा था?
पूर्णागिरी मंदिर टनकपुर के अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है .यह मंदिर 108 सिद्ध पीठ में से एक है .इस पवित्र शक्तिपीठ के दर्शन हेतु श्रद्धालु वर्ष भर आते हैं. परंतु मार्च में होली के दिन से जून तक 3 महीने तक यहां मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की सुविधा प्रदान की जाती हैं .मां पूर्णागिरी मंदिर में प्रतिवर्ष 25 लाख से अधिक दर्शनार्थ आते हैं?
अन्नपूर्णा शिखर |
51 सिद्ध पीठों में एक मां पूर्णागिरि मंदिर की है खूब मान्यता
काली नदी के तट पर घने जंगलों और पर्वतमालाओं के बीच अन्नपूर्णा पर्वत माला पर पूर्णागिरि का मंदिर है जो देवी शक्ति के साथ प्राकृतिक सौंदर्य के कारण आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
पूर्णागिरि मंदिर की मान्यता है कि जब भगवान शिव शंकर तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से मां सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे, तब भगवान विष्णु ने संसार को भयंकर प्रलय से बचाने के लिए मां सती के पार्थिव शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से टुकड़े कर दिए जो धरती के विभिन्न स्थानों में जा गिरे। जहां मां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। माता सती का नाभि अंग चंपावत जिले के अन्नपूर्णा पर्वत पर गिरने से मां पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई। तब से देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि, कालिका गिरि, हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पुण्य पर्वत स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ।
पूर्णागिरि में कौन सी नदी बहती है.
शारदा नदी |
भारत देश में प्रवाहित होने वाली शारदा नदी उत्तराखंड की प्रमुख नदियों में से एक है .इस नदी का उद्गम क्षेत्र उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से होता है. इस नदी की लंबाई लगभग 350 किलोमीटर है. इसी शारदा नदी के किनारे अन्नपूर्णा शिखर पर मौजूद है पूर्णागिरी मंदिर जो भारत और नेपाल के सीमाओं से लगा है?
पूर्णागिरि कब जाना चाहिए
वैसे तो पूर्णागिरि में वर्ष भर तीर्थ यात्रियों का भारत के सभी राज्यों से आते हैं. विशेषकर नवरात्रि मार्च अप्रैल के महीने में भक्ति अधिक संख्या में आते हैं. भक्त यहां दर्शनों के लिए भक्ति भाव के साथ पहाड़ पर चढ़ाई करते हैं .पूर्णागिरी मंदिर के निकट ग्राम वासियों की माने तो अप्रैल के महीने में आना बहुत आनंददायक होता है. क्योंकि इस समय यहां का मौसम बहुत सुहाना होता है?
पूर्णागिरी मंदिर की सीढ़ियां कितनी है
.मंदिर मार्ग प्रवेश द्वार
पूर्णागिरी मंदिर में तीर्थ यात्रियों को तीर्थ स्थान पर पहुंचने के लिए टनकपुर से टुनियांश ,तक 21 किलोमीटर की दूरी सड़क से मोटर वाहन से पूरी करन करनी होती है .उसके बाद 3 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही पूरा करना होता है.
यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है जो यहां से 21 किलोमीटर दूरी पर है.
पूर्णागिरी मंदिर की फोटो
पूर्णागिरी मंदिर जाने के लिए 3 किलोमीटर की चढ़ाई पूरी करनी होती है. जो टुनियांश से लेकर मंदिर तक की दूरी है.?
टनकपुर से पूर्णागिरी मंदिर कितनी दूर है.
टनकपुर से पूर्णागिरी मंदिर 21 किलोमीटर दूरी पर है. जो टनकपुर के अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है .यह मंदिर 108 सिद्ध पीठ में से एक है?
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