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Purnagiri Temple: पूर्णागिरी मंदिर. पूर्णागिरी मंदिर की चढ़ाई पूर्णागिरी मंदिर का इतिहास..

 पूर्णागिरि मंदिर: पूर्णागिरि मंदिर की कहानी पूर्णागिरि मंदिर का इतिहास।

Purnagiri Temple: पूर्णागिरी मंदिर. पूर्णागिरी मंदिर की चढ़ाई  पूर्णागिरी मंदिर का इतिहास..


अगर आपको  मां पूर्णागिरी की यात्रा करनी है .तो आपको पैदल 3 किलोमीटर यात्रा पूरी करनी होगी.
Maa Purnagiri 108 शक्ति पीठो में से एक है . यह  स्थल उत्तराखंण्ड राज्य के चम्पावत जिले के टनकपुर शहर से 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित है  ,


उत्तराखंड राज्य के चम्पावत जिले के टनकपुर नाम के शहर से 21 किलोमीटर दूरी पर स्थित अन्नपूर्णा शिखर पे माता रानी का यह पवित्र धाम स्थित है. यह नेपाल की सीमा से समीप है. इस मन्दिर की आराध्य देवी महाकाली माँ है.  पूर्णागिरि मन्दिर में देवीमहाकाली की पूजा अर्चना की जाती है .

आप थोडा सा समय निकालकर यहाँ अवश्य आये ,और यहां आकर माँ पूर्णागिरी के दर्शन करे ,और प्रकृति की ख़ूबसूरती को बेहद ही नजदीक से जाने ,


पूर्णागिरी मंदिर, जो भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक धारा का हिस्सा है, एक आध्यात्मिक स्थल है जिसे विशेष रूप से महाकाली की पीठ के रूप में माना जाता है इस मंदिर के निर्माण के पीछे है रहस्यमय और महत्वपूर्ण इतिहास।

पूर्णागिरि मंदिर भारत के ज्वालामुखी शहर टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फुट की दूरी पर स्थित है। यह चतुर् आदि शक्तिपीठ में से एक है। यह स्थान है महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहां विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। वास्तव में इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान अत्यंत कष्ट सहकर भी यहां आएं हैं

पूर्णागिरि मंदिर: पूर्णागिरि मंदिर की कहानी पूर्णागिरि मंदिर का इतिहास।

पूर्णागिरी मंदिर 


विविध युगों में परिवर्तन:

पूर्णागिरी मंदिर ने विभिन्न युगों में अपनी शैली और संरचना में कई मंदिरों का सामना किया है। यानी, इसके विकास की प्रक्रिया में देखा जा सकता है, जिसने इसे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक खनिज बनाया है।


पूर्णागिरि मंदिर भारत 

सांस्कृतिक महत्व :

यहां पूर्णागिरि मंदिर के सांस्कृतिक महत्व पर विचार किया गया है, जिसमें आस्था, पूजा-अर्चना और साध्य के आयाम शामिल हैं। मंदिर की कला और शिल्पकला ने इसे एक अनोखा स्थान बना दिया है।

पूर्णागिरि आध्यात्मिक मंदिर के अधिकारी:

पूर्णागिरि मंदिर के आध्यात्मिक पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहां तीर्थयात्रियों को अपनी आत्मा के साथ अनोखा अनुभव प्रदान किया जाता है।




पूर्णागिरी मंदिर मंदिर  के स्पर्श:

पूर्णागिरि मंदिर ने मानवता को अपने पवित्र स्थान से जोड़ने का काम किया है। यहां आने वाले लोग न केवल धार्मिक झुकाव-जाल से घिरे होते हैं, बल्कि उन्हें एक अनोखे सांस्कृतिक अनुभव का भी आनंद मिलता है।

इस प्रकार, पूर्णागिरी मंदिर का इतिहास एक ऐसी यात्रा है जो विभिन्न समय के संस्करणों में बदलती रही है, लेकिन इसकी महत्वपूर्णता और आध्यात्मिक दृढ़ता में कभी कमी नहीं आई है।

पूर्णागिरी मंदिर की कहानी






टनकपुर से 20 किलोमीटर दूर, आर्किटेक्ट से 171 किलोमीटर दूर और चंपावत से 92 किलोमीटर दूर स्थित है  | पूर्णागिरी मंदिर 


पूर्णागिरी मंदिर का इतिहास.

देवी सती और दक्ष यज्ञ:

पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार जब वह अपने माता-पिता के घर गई तो वहां उनके पिता दक्ष यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। यज्ञ में भगवान शिव को तलवार मिली जिससे देवी सती बहुत आहत हुईं।

तांडव नृत्य और सती की उत्तराधिकारिता:


दुःखिनी ( सती ) ने अपनी अधिकारिता की असमाप्ति के बाद, वह भगवान शिव के साथ संयोगवश स्थल पर जाकर नृत्य करती हुई शिव की अंगाही डिग्रीयों में विलीन हो गयी। इस प्रकार, उनकी एकांत भावना ने उन्हें अपने अद्वितीय स्वरूप में विलीन कर दिया।

पूर्णागिरी मंदिर देवी सती के शव और शक्तिपीठ:


भगवान शिव ने अपनी पत्नी के शव को भस्म कर तांडव नृत्य करते हुए विशाल शक्तिपीठों को विभाजित कर दिया। इस प्रकार, शक्तिपीठों का निर्माण हुआ जहां देवी सती के विभाजन के स्थान पर उनकी पृष्ठभूमिभूमि की स्थापना की गई।

पूर्णागिरि मंदिर शक्तिपीठों का महत्व:


पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि शक्तिपीठों में भंडारे की शक्ति बहुत अधिक है और यहां भक्तों को विशेष रूप से माना जाता है। इन तीर्थों में नवदुर्गा के रूप में की जाने वाली पूजा और अन्य तीर्थ स्थलों की यात्राएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।




इस प्रकार, शक्तिपीठों की स्थापना पौराणिक कथाओं में दिव्य और रहस्यमय घटनाओं के रूप में वर्णित है जो हिंदू धर्म में विशिष्टता और भक्ति से जुड़ी हुई हैं।


(इस लेख में जो भी जानकारी दी गई है, वह पौराणिक कथाओं के अनुसार, मंदिरों के पुजारियों की सहायता से ली गई है।)


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