उत्तराखंड UCC Bill Kya Hai” UCC बिल से किसको होगा फायदा
Uttarakhand Ucc Bill |
UCC BILL : के तहत प्रदेश के सभी नागरिकों के लिए विवाह ,तलाक ,गुजारा भत्ता ,जमीन ,संपत्ति और उत्तराधिकारी के समान कानून लागू होंगे .चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाले हो|
उत्तराखंड राज्य की स्थापना साल 2000 में हुई उत्तराखंड राज्य में हमेशा कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को सरकार चलाने का मौका प्रदेश की जनता ने दिया.
लेकिन राज्य में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करने का इतिहास रचने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मार्च 2022 में सरकार का गठन के तत्काल बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही UCC बिल तैयार करने के लिए विशेषज्ञ की एक समिति के गठन को मंजूरी दे दी थी|
UCC BILL आज होगा उत्तराखंड विधानसभा में पेश
कई सवालों को लेकर देश भर में चर्चित UCC बिल पर विधेयक आज उत्तराखंड विधानसभा में पेश किया जाएगा.
बता दें कि विधेयक से जुड़ी जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है.
इस UCC को लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने सोमवार को कहा कि प्रस्तावित UCC सभी वर्गों की भलाई के लिए होगा|
UCC विधेयक में है अनेक प्रस्ताव
UCC के देश में बने कई प्रस्ताव में एक से अधिक विवाह और बाल विवाह पर पूरी तरह से प्रतिबंध है .सभी धर्म की लड़कियों के लिए शादी की आयु समान होगी. तथा तलाक के लिए सभी के लिए एक समान प्रक्रिया होगी.
पुत्र -पुत्री में समान हक और समाज में एक जूटता बनी रहे इस विषय पर चार दिवसीय विधानसभा सत्र के दौरान चर्चा की जाएगी.
यह सत्र सोमवार से गुरुवार तक चलेगा|
UCC के फायदे
उत्तराखंड में हर धर्म में शादी तलाक के लिए एक ही कानून लागू होंगे.
जो कानून हिंदुओं के लिए होगा वही दूसरे धर्म के लिए भी मान्य होगा.
बिना तलाक एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकता कोई भी व्यक्ति.
मुसलमानो को 4 शादी करने की छूट नहीं रहेगी.
समान नागरिक संहिता के गुण और दोष.
यूनिफॉर्म सिविल कोड के फायदे
समान नागरिक संहिता के पक्ष और विपक्ष
समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क
भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का विचार था कि यूसीसी वांछनीय है, लेकिन संविधान सभा में महत्वपूर्ण विभाजन के बाद उन्होंने इसे फिलहाल स्वैच्छिक बने रहने का प्रस्ताव दिया। अंबेडकर ने कहा, "शुरुआत करने के तरीके के रूप में, भविष्य की संसद यह प्रावधान कर सकती है .
कि संहिता केवल उन लोगों पर लागू होगी जो घोषणा करते हैं कि वे इसका पालन करने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, प्रारंभ में, "संहिता का अनुप्रयोग विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक हो सकता है।" अंबेडकर को मानना था कि, यूसीसी को शुरू में एक स्वैच्छिक संहिता के रूप में पेश किया जा सकता है और संसद निश्चित रूप से नागरिकों को इसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं करेगी। कोड के पक्ष में दलील दी जाती है.
धार्मिक आधार पर पर्सनल लॉ होने की वजह से संविधान के पंथनिरपेक्ष की भावना का उल्लंघन होता है। संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि हर नागरिक को अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार मिला हुआ है। उनकी दलील है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के अभाव में महिलाओं के मूल अधिकार का हनन हो रहा है। शादी, तलाक, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर एक समान कानून नहीं होने से महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जा रहा है। पक्षकारों का तर्क है कि लैंगिक समानता और सामाजिक समानता के लिए समान नागरिक संहिता होनी ही चाहिए। पक्ष में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि मुस्लिम समाज में महिलाएं धर्म के आधार पर चल रहे पर्सनल लॉ की वजह से हिंसा और भेदभाव का शिकार होती हैं। इन महिलाओं को बहुविवाह और हलाला जैसी प्रथाओं का दंश झेलना पड़ रहा है।
समान नागरिक संहिता के विरोध में तर्क है कि
21वें विधि आयोग के "पारिवारिक कानून में सुधार" पर अगस्त 2018 के परामर्श पत्र के अनुसार, इस बिंदु पर यूसीसी न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है। व्यक्तिगत कानूनों में भेदभाव और असमानता से निपटने के लिए, सभी धर्मों में मौजूदा पारिवारिक कानूनों को संशोधित और संहिताबद्ध किया जाना चाहिए। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करते आए हैं। विरोध में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि संविधान के मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 25 से 28 के बीच हर शख्स को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए हर धर्म के लोगों पर एक समान पर्सनल लॉ थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करना है। मुस्लिम इसे उनके धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। ये बोर्ड दलील देता है कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीने की अनुमति देता है। इसी अधिकार की वजह से अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों को अपने रीति-रिवाज, आस्था और परंपरा के मुताबिक अलग पर्सनल लॉ के पालन करने की छूट है|
UCC लागू होने से क्या नहीं बदलेगा
UCC BILL लाने वाला देश का पहला राज्य होगा उत्तराखंड
UCC क्यों जरूरी है.
UCC के समर्थकों का मानना है कि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और धर्म के आधार पर भेदभाव को कम करने और कानूनी प्रणाली को सरल बनाने में मदद करेगा। हालांकि, विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।
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