समान नागरिक संहिता किस राज्य में लागू है , समान नागरिक संहिता के गुण और दोष
UTTARAKHAND में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में प्रदेश सरकार ने महत्वपूर्ण पहल की है। विधानसभा के विस्तारित सत्र में मंगलवार को इससे संबंधित विधेयक प्रस्तुत होने के बाद इसे लेकर तमाम जिज्ञासाएं भी आमजन के मन में हैं।
समान नागरिक संहिता के गुण और दोष.
यूनिफॉर्म सिविल कोड के फायदे
समान नागरिक संहिता विभिन्न पर्सनल लॉज़ के अंतर्गत महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न को दूर करके लैंगिक न्याय एवं समानता सुनिश्चित करेगी।
यह विवाह, तलाक़, उत्तराधिकार, गोद लेने, भरण-पोषण आदि मामलों में महिलाओं को समान अधिकार और दर्जा प्रदान करेगी।
- Uniform Civil Code में लोगों को लैंगिक समानता का अधिकार भी दिया जाता है ताकि इसे बढ़ावा मिल सके।
- सभी नागरिकों को समान अधिकार देश के कानून के माध्यम से प्रदान किए जाएंगे।
- समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। क्योंकि कुछ धर्म के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित है।
- महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार, गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे तथा बेटी को भी संपत्ति का समान अधिकार दिया जाएगा।
- मुस्लिम समाज द्वारा लड़कियों की शादी छोटी आयु में कर दी जाती है जब देश में UCC लागू किया जाएगा। तब से इस पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाएगा ताकि बेटी की शादी कम उम्र में ना की जा सके।
- देश में जितने भी प्रकार के समुदाय है वहां की जनता को समान नागरिक संहिता के लागू होने से समान अधिकार प्रदान किए जाएंगे।
- UCC कानून को समान रूप से नागरिकों को पर लागू करने का दायित्व राज्य सरकार को सौंपा गया है।
- देश में किसी भी धर्म, जाति, वर्ग के नागरिकों के अधिकार का हनन होने से रोका जाएगा।
- जिन भी नागरिकों के साथ धर्म, जाति या रंग रूप के साथ भेदभाव किया जाता है उसे UCC के तहत खत्म किया जाएगा।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड जब बनाया जाएगा तो यह उन कानूनों को सरल बनाने का काम करेगा जो वर्तमान में धार्मिक मान्यताओं जैसे हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून अन्य आधार पर अलग-अलग है।
- देश के मुस्लिम समुदाय में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है। इस लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को अपनी मर्जी से सिर्फ तीन बार में तलाक कहकर तलाक दे सकता है। इसके अलावा मुस्लिम लो में तलाक के और भी कई तरीके दिए गए हैं। यह सब समस्या मुस्लिम महिलाओं को झेलनी पड़ती है। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत एक ही प्रकार के तहत तलाक किए जाएंगे।
- देश की महिलाओं को Uniform Civil Code के माध्यम से समान अधिकार दिया जाएगा।
समान नागरिक संहिता क्या है.
Uniform Civil Code:- भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को जीने की स्वतंत्रता के साथ ही भारत में रहने वाले लोगों के लिए एक समान कानून भी बनाए गए हैं। जो कि समान रूप से सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है। जिसे यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम से जाना जाता है इसे हिंदी में समान नागरिक संहिता कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है हर नागरिक के लिए एक समान कानून चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों ना हो। भारतीय संविधान में Uniform Civil Code देश के सभी धर्मों के नागरिकों पर लागू किया जाता है। इस कानून के माध्यम से धर्म, जाति में किसी भी समुदाय के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक, जमीन जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून होता है जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं होता है। इसमें सब को एक समान अधिकार प्रदान किए जाएंगे। ताकि किसी के साथ अन्याय ना हो।
Uniform Civil Code हिंदी में समान नागरिक संहिता कहा जाता है। जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। सभी धार्मिक समुदाय पर लागू होने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) एक देश एक नियम का आह्वान करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। इस कानून के तहत विवाह, तलाक रखरखाव, विरासत, गोद लेने, उत्तराधिकारी जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है। जिससे कि सभी को समानता का अधिकार प्राप्त हो सके। जो इस बात पर आधारित है कि आधुनिक सभ्यता में धर्म और कानून के बीच कोई संबंध नहीं है। जिसका उद्देश्य कमजोर समूह के खिलाफ भेदभाव को दूर करना और देशभर में विविध सांस्कृतिक समूह में सामंजस्य स्थापित करना है। संविधान में समान नागरिक संहिता को अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है लेकिन आज तक देश में यह कानून लागू नहीं हो पाया। इसको लेकर एक बड़ी बहस चलती रही है।
उत्तराखंड में लागू हो सकता है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड कहां पर लागू है?
देश में कई बार केंद्र सरकार राज्य सरकार द्वारा आपस में चर्चा की गई कि Uniform Civil Code को देश में लागू किया जाए लेकिन अभी तक इस पर किसी भी प्रकार का कोई कार्य नहीं किया गया है। भारत देश के केवल गोवा राज्य में ही समान नागरिक संहिता को शुरू किया गया है गोवा राज्य में जब से पुर्तगाल सरकार आई है तब से ही वहां समान नागरिक संहिता (UCC) की शुरुआत हो गई थी। गोवा में 1961 में Uniform Civil Code लागू होने पर ही सरकार भी बनाई गई। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान को बनाते समय कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड वांछनीय है लेकिन फिलहाल यह स्वैच्छिक रहना चाहिए और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 35 को भाग 4 में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के एक भाग के रूप में जोड़ा गया था। जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के रूप में है।
Uniform Civil Code में शामिल
व्यक्तिगत स्तर
विवाह
गोद लेना तथा तलाक
संपत्ति का अधिकार प्राप्त करना तथा संचालन करना
समान नागरिक संहिता इन देशों में लागू है।
मलेशिया
अमेरिका
तुर्की
सूडान
पाकिस्तान
इंडोनेशिया
आयरलैंड
बांग्लादेश
इजिप्ट
क्यों है देश में UCC कानून की आवश्यकता
देश में अलग-अलग धर्म है जिसके लिए अलग-अलग कानून बनाए गए हैं इन अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। Uniform Civil Code लागू होने से न्यायपालिका को इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में सालों से लंबित पड़े मामलों के फैसले भी जल्द हो सकेंगे। अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाता है तो शादी तलाक गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए जैसा कानून होगा फिर चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। आपको बता दें कि वर्तमान में इन मामलों का निपटारा हर धर्म के लोग अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं। कानून में सभी के लिए एक समानता होने से देश में एकता बढ़ेगी। जिससे देश में नागरिकों में भी एकता होगी और किसी प्रकार का कोई वैमनस्य नहीं होगा। साथ ही देश भी तेजी से विकास की ओर आगे बढ़ेगा। इसके अलावा हर भारतीय एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो पाएगा।
Uniform Civil Code के लाभ
दुनिया भर में करीब 125 देशों में Uniform Civil Code लागू है .
Uniform Civil Code में लोगों को लैंगिक समानता का अधिकार भी दिया जाता है ताकि इसे बढ़ावा मिल सके।
सभी नागरिकों को समान अधिकार देश के कानून के माध्यम से प्रदान किए जाएंगे।
समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। क्योंकि कुछ धर्म के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित है।
महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार, गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे तथा बेटी को भी संपत्ति का समान अधिकार दिया जाएगा।
मुस्लिम समाज द्वारा लड़कियों की शादी छोटी आयु में कर दी जाती है जब देश में UCC लागू किया जाएगा। तब से इस पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाएगा ताकि बेटी की शादी कम उम्र में ना की जा सके।
देश में जितने भी प्रकार के समुदाय है वहां की जनता को समान नागरिक संहिता के लागू होने से समान अधिकार प्रदान किए जाएंगे।
UCC कानून को समान रूप से नागरिकों को पर लागू करने का दायित्व राज्य सरकार को सौंपा गया है।
देश में किसी भी धर्म, जाति, वर्ग के नागरिकों के अधिकार का हनन होने से रोका जाएगा।
जिन भी नागरिकों के साथ धर्म, जाति या रंग रूप के साथ भेदभाव किया जाता है उसे UCC के तहत खत्म किया जाएगा।
यूनिफॉर्म सिविल कोड जब बनाया जाएगा तो यह उन कानूनों को सरल बनाने का काम करेगा जो वर्तमान में धार्मिक मान्यताओं जैसे हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून अन्य आधार पर अलग-अलग है।
देश के मुस्लिम समुदाय में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है। इस लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को अपनी मर्जी से सिर्फ तीन बार में तलाक कहकर तलाक दे सकता है। इसके अलावा मुस्लिम लो में तलाक के और भी कई तरीके दिए गए हैं। यह सब समस्या मुस्लिम महिलाओं को झेलनी पड़ती है। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत एक ही प्रकार के तहत तलाक किए जाएंगे।
देश की महिलाओं को Uniform Civil Code के माध्यम से समान अधिकार दिया जाएगा।
धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 से 28 में देश के नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है। जिसे यूनिफॉर्म सिविल कोड में सम्मिलित किया गया है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार देश में निवास करने वाले सभी धर्म के नागरिकों को दिया गया है। धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में कहा गया है कि देश का कोई भी नागरिक अपनी स्वतंत्रता से अपने धर्म का प्रचार प्रसार कर सकता है। सबको अपने धर्म अनुसार स्वतंत्र रहने का अधिकार दिया जाता है। हर नागरिक अपने धर्म को बढ़ावा दे सकता है और कोई अन्य नागरिक किसी भी व्यक्ति के धर्म के खिलाफ उंगली नहीं उठा सकता है।
समान नागरिक संहिता के पक्ष और विपक्ष
समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क
भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का विचार था कि यूसीसी वांछनीय है, लेकिन संविधान सभा में महत्वपूर्ण विभाजन के बाद उन्होंने इसे फिलहाल स्वैच्छिक बने रहने का प्रस्ताव दिया। अंबेडकर ने कहा, "शुरुआत करने के तरीके के रूप में, भविष्य की संसद यह प्रावधान कर सकती है .
कि संहिता केवल उन लोगों पर लागू होगी जो घोषणा करते हैं कि वे इसका पालन करने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, प्रारंभ में, "संहिता का अनुप्रयोग विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक हो सकता है।" अंबेडकर को मानना था कि, यूसीसी को शुरू में एक स्वैच्छिक संहिता के रूप में पेश किया जा सकता है और संसद निश्चित रूप से नागरिकों को इसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं करेगी। कोड के पक्ष में दलील दी जाती है.
धार्मिक आधार पर पर्सनल लॉ होने की वजह से संविधान के पंथनिरपेक्ष की भावना का उल्लंघन होता है। संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि हर नागरिक को अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार मिला हुआ है। उनकी दलील है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के अभाव में महिलाओं के मूल अधिकार का हनन हो रहा है। शादी, तलाक, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर एक समान कानून नहीं होने से महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जा रहा है। पक्षकारों का तर्क है कि लैंगिक समानता और सामाजिक समानता के लिए समान नागरिक संहिता होनी ही चाहिए। पक्ष में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि मुस्लिम समाज में महिलाएं धर्म के आधार पर चल रहे पर्सनल लॉ की वजह से हिंसा और भेदभाव का शिकार होती हैं। इन महिलाओं को बहुविवाह और हलाला जैसी प्रथाओं का दंश झेलना पड़ रहा है।
समान नागरिक संहिता के विरोध में तर्क है कि
21वें विधि आयोग के "पारिवारिक कानून में सुधार" पर अगस्त 2018 के परामर्श पत्र के अनुसार, इस बिंदु पर यूसीसी न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है। व्यक्तिगत कानूनों में भेदभाव और असमानता से निपटने के लिए, सभी धर्मों में मौजूदा पारिवारिक कानूनों को संशोधित और संहिताबद्ध किया जाना चाहिए। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करते आए हैं। विरोध में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि संविधान के मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 25 से 28 के बीच हर शख्स को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए हर धर्म के लोगों पर एक समान पर्सनल लॉ थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करना है। मुस्लिम इसे उनके धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। ये बोर्ड दलील देता है कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीने की अनुमति देता है। इसी अधिकार की वजह से अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों को अपने रीति-रिवाज, आस्था और परंपरा के मुताबिक अलग पर्सनल लॉ के पालन करने की छूट है|
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